Sunday 23 August 2015

पाकिस्तान से वार्ता विफल : न तुम हारे न हम जीते

  • राजेश रावत भोपाल
23 अगस्त 2015 (इमेज 23 अगस्त का
 दैनिक भास्कर)

-दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता विफल

हिंदुस्तान और पाकिस्तान दो अजीब पड़ोसी हैं। बातचीत करना भी चाहते हैं और नहीं भी करना चाहते हैं। पाकिसान में सेना के हाथ में सत्ता का संचालन है। भारत में सबसे बड़े दल के पास। जिसे देश के 125 करोड़ लोगों को समर्थन हासिल है। इस पूरी बातचीत में दोनों में फर्क नजर नहीं आया।

कूटनीति के मंच पर दोनों ही देश के कर्णधार अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। पाकिस्तान के हुकुमरान भीतर खाने सोच रहे हैं कि हम भारत के झांसे में नहीं आए हैं। बात नहीं करना थी। तो नहीं गए। भारत के कर्णधार सोच रहे हैं। नहीं बुलाना था। बस दुनिया भर को बताना था। हम तो बात करना चाहते थे। पाकिस्तान तैयार नहीं हुआ। यानि न तुम जीते न हम हारे।

क्या वास्तव में दुनिया भर के कूटनीति पर नजर रखने वाले और करने वाले इतने नासमझ होंगे। जो इन दोनों देशों के सत्ताधारियों के बनावटी खेल को नहीं समझ रहे होंगे। वे जानते हैं दोनों देश केवल अपने लोगों को गुमराह कर रहे हैं। उनका ध्यान हटाने के लिए कई दिनों से बातचीत करने का झांसा दे रहे थे। समय पर दोनों ने अपने -अपने देश के लोगों के सामने कूटनीतिक चालें चली। जनता को गुमराह किया और चुप बैठ गए। असल में दुनिया के दूसरे देश भी नहीं चाहते हैं कि एशिया में शांति रहे। क्योंकि इसे उनका हथियार समेत अन्य कारोबार ठप हो जाएगा। शांति होने पर यहां के लोगों का ध्यान बेसिक समस्याओं पर जाएगा। वे आर्थिक गुलामी के झांसे में नहीं आएंगे।

बस चुपचाप देखते रहे। दोनों देशों के अपने -अपने समर्थक हुक्मरानों को निर्देश देते रहे। बातचीत का नाटक पूरी तरह से फिल्म होना चाहिए। जनता का इससे मनोरंजन होना चाहिए। रही सही कसर सेना के तमाम अफसरों ने कर दिया। वे जवानों की मौत से आक्रोशित हैं। पर उसे रोकने के लिए होने वाले हर प्रयास और उसके पीछे की कूटनीति में हमेशा उलझ जाते हैं।

यानि जवान तो अभी भी उसी तरह से सरहद में अपने प्राण न्यौछावर करते रहेंगे। पाकिस्तान इस तरह की कूटनीति को करता ही रहेगा। क्योंकि वहां के अंदरूनी हालात बेहद खराब हैं। वह लोगों को भारत के खिलाफ भड़काकर ही उनका ध्यान हटाए रखना चाहता है। सेना अपनी पकड़ इसी डर को भुनाकर बनाए रखना चाहती है। पर भारत हर बार की तरह पाकिस्तान की कूटनीति में उलझ गई। पाकिस्तान कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की तमाम कोशिशों में लगातार सफल हो रहा है। लेकिन भारत के पास इसका कोई तोड़ नहीं है।
भारत कश्मीर मुद्दे को गौण बनाने के लिए कोई रणनीति नहीं बना पाता है। नेहरू के समय से अब तक कोई भी राजनेता इस मुद्दे को गौण नहीं बना पाया है। बल्कि अलगाव वादी लगातार ताकतवर होते जा रहे हैं। भारत केवल रुतबे से उनको दबाने की कोशिश करता है।

दुनिया के देश भारत के दवाब में आती तो है पर पाकिस्तान को नजर अंदाज नहीं करती है। चीन ने भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान को लगातार मदद दे रही है। तब भारत को एक नई रणनीति के तहत कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनने से रोकने के लिए प्रयास करना होगा। तब ही यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय नहीं बनेगा। वरना आने वाले समय में दुनिया के लोग भारत का साथ छोड़ देंगे। क्योंकि वहां उनके आर्थिक हित सधने लगेंगे। तब भारत के पास कोई विकल्प नहीं होगा। जरूरत है कि भारत वहां के हालात पर नए नजरिये से सोचे और कूटनीति उसी तरह से बयान।

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